मजबूरी और प्राथमिकता के द्वन्ध मे कुछ इस तरह उलझा रहा कि समझने में कई वर्ष लग गए के मजबूरी ही तय करती है कि आप की प्राथमिकता क्या है।
मजबूरी हमारी महत्वाकांक्षाऔं को सीमांत करती है, परन्तु हमारे चुनाव का हक नहीं छीनती।
मनुष्य की प्राथमिकता ही सर्वोपरि है।
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