भयानक रात


Priya rajoriya



उस रात जब में,
शुमशान रास्तों से गुज़ार रही थी।
मुझे अंदाजा भी नहीं था,
वो रात मेरे लिए इतनी भयानक होगी।
उन हैवानो ने मुझे अकेला दलह,
अपनी हवस का शिकार बना लिया,
में खुदके आश्तित्व को बचने की लिए हर नाकाम कोशिश करने में लगी थी ,
पर अफ़सोस में खुदको उनके गिरफत से बचा न सकी,
वो मुझे जब तक नोचते रहे जब तक उन्हें ये यकीं ना हो गया की में अपनी आँखरी साँस ले रही हूँ।
में लड़ती रही अपनी मौत से ,
ज़रा -सा वक़्त और दे दो ,
इन हैवानो को उन्हें उनके गुनाह की सज़ा देने का मौका दे दो।
में चीखती रही शायद कोई मेरी मदद के लिए आजाये पर लोग सुनकर भी अनसुना करके जा रहे थे।
में भी हार मानने को तैयार ना थी मेरे हौसले देख मेरी मौत ने मुझे मौहलत दे दी।
उस वक़्त में यही सोच रही थी मेरी ,जिंदगी,मेरे सपने एक पल में चकना चूर कर दिए गए ।
ये दर्द जो मुझेहो रहा हैं,
उसका एहसास उन्हें भी होना चाहिए ।
उपरवाले ने मेरी सुन ली ,
मैंने अपनी आँखरी साँसों में उन हैवानो के खिलाफ बयान दिए,
बस इस उम्मीद से की उपरवाला मेरे साथ इन्साफ ज़रूर करेगा।
फिर में इस उम्मीद के साथ कभी ना ख़त्म होनेवाली गहरी नीद में चली गयी।
अब ना कोई दर्द हैं,ना कोई तकलीफ है,बस एक सवाल है ,
क्या लड़की होना गुनाह हैं?
क्या आज़ादी चाहना गुनाह हैं?
क्या बिना भेद-भाव वाला समाज चाहना गुनाह हैं?
अगर तुम्हे जीने का हक़ हैं तो हमे क्यों नहीं।।

Share Article :




You may also like