दस वर्षीय अक्षय अपने पापा इंस्पेक्टर राकेश से बहुत नाराज रहता था क्योंकि ईमानदारी से अपनी ड्यूटी निभाने के कारण राकेश अक्षय को ज्यादा वक्त नहीं दे पाते थे।
अपने महकमे में सबसे काबिल होने के कारण ज्यादातर जरूरी केस भी राकेश को ही सौंपे जाते थे।
घर लौटने पर अक्षय का उदास चेहरा देख राकेश को दुख होता था लेकिन अपने फ़र्ज़ से नाइंसाफी करना उनके उसूलों के खिलाफ था।
किसी तरह प्यार-दुलार कर अगली बार किसी खास मौके पर साथ रहने का वादा कर वो अपने बेटे को मना लेते।
दशहरे का दिन था। रावण-वध देखने के लिए अक्षय तैयार होकर राकेश के आने का इंतज़ार कर रहा था।
राकेश घर जाने के लिए निकल ही रहे थे की खबर आई एक जगह मेले में भगदड़ मच गई है।
स्थिति संभालने के लिए राकेश को तुरंत घटनास्थल पहुँचने का आदेश आया।
घटनास्थल पहुँचकर राकेश अपनी टीम के साथ स्थिति संभालने और घायलों को अस्पताल भेजने में लग गए।
हालात के काबू में आने के बाद राकेश घर की ओर रवाना हुए।
घर पहुँचकर उन्हें पता चला अक्षय गुस्से में भूखा ही सो गया था। उसकी माँ ऋतु ने उसे मनाने और मेले में ले जाने की कोशिश की लेकिन बिना अपने पापा के वो कहीं जाने के लिए तैयार नहीं था।
राकेश बहुत दुखी और परेशान हो गए।
अगली सुबह उन्होंने अक्षय से बात करनी चाही लेकिन अक्षय बिना उनसे बात किये पास के मैदान में खेलने चला गया।
हारकर राकेश भी पुलिस स्टेशन चले गए।
थोड़ी देर बाद जब अक्षय घर पहुँचा तो देखा एक आदमी अपने बच्चे को गोद में लिए ऋतु को जबरदस्ती एक पैकेट देने की कोशिश कर रहा था।
अक्षय को देखते ही वो उसके सर पर हाथ रखकर उसे आशीर्वाद और दुआएँ देने लगा।
अक्षय हैरान था। उसे कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था।
अंततः ऋतु के उस पैकेट को लेने के बाद वो आदमी चला गया।
अक्षय ने ऋतु से पूछा- माँ वो अंकल कौन थे?
ऋतु ने कहा- वो अंकल मेले में रसगुल्ले की दुकान लगाते है। उनका बेटा कल मेले में हुई भगदड़ में खो गया था जिसे तुम्हारे पापा ने खोजकर उनके पास पहुँचाया। इसलिये वो तुम्हारे पापा को धन्यवाद के तौर पर अपने बनाये हुए रसगुल्ले दे गए है।
अब अक्षय को पता चला कल उसके पापा क्यों उसे मेला घुमाने नहीं ले जा सके थे। उसे बहुत दुख हुआ कि उसने सुबह पापा से बात नहीं कि।
कुछ सोचता हुआ अक्षय अपने कमरे में गया और अपने पापा को एक चिट्ठी लिखी।
'प्यारे पापा,
आपका बेटा आपसे सॉरी बोलता है कल के लिए। मुझे आज पता चला आप कितना अच्छा काम करते है। आप मेरे हीरो है।
मैं भी बड़ा होकर आपके जैसा ही बनूँगा।
और अब मैं कभी आपसे नाराज नहीं होऊँगा पापा।
आपका अक्षय'
ज़िद करके अक्षय ने ऋतु के हाथों पुलिस स्टेशन में राकेश को ये चिट्ठी भिजवाई।
ऋतु को देखकर राकेश के साथ मौजूद कॉन्स्टेबल सोचने लगे लगता है कोई बहुत गम्भीर बात हो गयी है तभी मैडम खुद चलकर आयी है।
जब ऋतु ने राकेश को चिट्ठी दी तो उसे पढ़कर राकेश की आँखों में आँसू आ गए।
सारी दुनिया के साथ-साथ आज राकेश अपने बेटे की नज़रों में भी हीरो थे जो उनके लिए दुनिया के हर पुरस्कार से कहीं ज्यादा अनमोल था।