ना तुमने समझा, ना मैंने जाना
तुम हो कृष्ण, मैं बृज की राधा
रहेगा अपना, प्रेम बस आधा
वो नदियां, वो पंछी, वो आंगन तुम्हारा
लीला तुम्हारी, वो गोपियों की माला
बंसी बजैया तू मन में समाए
सुध बुध ना सूझे, बस तू नैनों में आए
रंग प्रेम का तेरे मुझपर चढ़ जाए
सतरंगी सा प्रेम, इन्द्रधनुष बन जाए ।।