होली और इश्क़ : ग़ज़ल


An Uneven Guy



जब सूखेगा रंग तेरा, चढ़ और ज़ियादा जाएगा। तेरे छवि का जो लेप यह, अंकित होगा फ़िर मुस्काएगा।। तू रहे ज़रा सा मधुर-मधुर, तू रहे तनिक बस हाए अगर। हृदयों में रक्त-रुधिर ना हो, फ़िर भी रूक ना यह पाएगा।। आलोक मात्र से तेरा बस, होता है हश्र क्या तोते का। मैना की छुअन को बोल ज़रा, कैसे फ़िर कोई सह पाएगा।। तेरा प्रेम मिले यूँ ही, वो तरुवर की मीठी छाया। तुझ बिन तो आदम अदना सा, हो अकिंचन धरा धर जाएगा।। तूँ हो जो साथ निभाने को, फ़िर उल्फ़त ना, हों उल्हाने चाहें। हो सर्प भले ही विषधर कोई, बम-भोले सा यह अड़ जाएगा।। हो भले सुने अनुनय ना विनय, चाहें हो भले कोई माया। यह वीरभद्र सा ख़ातिर तेरे दक्ष सभी, अग्नि को सौंपित कर जाएगा।। होली का रंग चढ़े कैसे, जिस तन को तेरी नज़र लगी। अब फ़ाग भी सुना जाए ना, तू आ तो निज-मन हर्षाएगा।। शब्दार्थ: *अंकित- चिन्हित/लिखित/छपा हुआ *लेप- पोतने के काम आने वाली वस्तु (coating) *आलोक- दर्शन/देखना *हश्र- (यहाँ) हाल *तरुवर- एक छायादार वृक्ष/पेड़ *आदम- आदमी *अदना- तुच्छ/छोटा *अकिंचन- गरीब *धरा- पृथ्वी/ज़मीन *उल्फ़त- प्यार/मोहब्बत *उल्हाने- ताने *अनुनय/विनय- विनम्रता ***दछ- माता सती के पिता ***वीरभद्र- बम भोले का दूत/रूप

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