ज़िन्दगी
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Priya rajoriya
ज़िन्दगी -एक ऐसा सफ़र जिसके शुरू होने का हर किसी को पता रहता है पर ख़त्म होने का किसी को नहीं पता।एक हाड मॉस का बना शारीर जिसमे जान फंक दी जाती है ।और जब ये ज़िन्दगी ख़त्म होती हैं तब वो शारीर भी उन्ही पञ्च तत्व में विलीन हो जाता हैं जहा से उसकी शुरुआत हुई थी।ज़िन्दगी में कई मानज़िल आती हैं जहा हमें रास्ते ढूढ़ने पड़ते हैं उन मांज़ीलॅं तक पहुचने के लिए,कई बार ऐसे परिस्थिति भी देखने मिल जाती हैं यह हम खुदको संम्भाल नहीं पाते।भागवान ने अगर मुसीबत दी हैं तो उनसे बचने के तरीके भी दिये हैं।यहां कुछ ऐसे रिश्ते भी होते हैं जो कभी नही बदलते और कुछ ऐसे रिश्ते जो बेनाम होते हैं।ज़िन्दगी उस फ़िल्म की तरह हैं जहाँ अंत तक रहस्य ही रहस्य छुपे रहते हैं। ज़िन्दगी जैसी भी हैं पर हमे जब तक जीनी चाहिए जब तक प्रकृति उससे वापस नहीं ले लेती।ज़िन्दगी के हर पहेलु जो जीना आना चाहिए ख़ुशी मैं मुस्कुराइए,गम में धीरज रखिये ।दूसरों के गम बाँटिये ,हमेशा बेहतर सोचों।