एहसास


Priya rajoriya



एक सफ़र ज़िन्दगी का शुरू कुछ ऐसे होता हैं-
माँ के आँचल तले हम उनका प्यार 
पाते हैं,
उनकी डांट, उनके संस्कार जो कही ना कही वो अपनी माँ से सीखती हैं।
हमारी पहली गुरु,
पापा ,ज़िन्दगी में वो शक्स होते हैं ,जो ख़ामोशी से आपके साथ खड़े रहते हैं,
आपको अपनी मंज़िल तक पहुचने में सबसे बड़ा योगदान जिसका श्रेय कभी नहीं लेते।
आपकी तरफ कोई ऊँगली भी उठाए तोह आप पर फर्क नहीं पड़ने देते।
फिर एक नया सिर्फ बचपन से होकर गुज़रता हैं ,ज़िन्दगी के सबसे यादगार पल बस इसी पड़ाव पर बनते हैं।
वो स्कुल वाला सफ़र ,
याद तो हमेशा रहता हैं ,सबसे ज़्यादा बेपरवाह ,दुनिया की कोई बंदिश तब हमे नहीं रोकती।
तब हम एहम नाम की कोई चीज़ भी होती हैं जानते ही नहीं थे।
किसी ने दिल भी दुखाया हो तो झट से माफ़ भी कर दिया करते थे।शिक्षकों को इतना सम्मान देते थे की कभी उनका कहना नहीं टालते थे और आज कोई हमारी गलती भी हमे बतादे तो आँखों में चुभने लगता हैं।यहाँ से आगे सपनो की दुनिया बनती हैं जो ना मिले तो टूट कर इस कदर बिखर जाते हैं मानो अब कुछ बचा ही ना हो।अगर कोई तुम्हे हँसकर बात भी कर ले तो प्यार समझ लेते हैं,जो वो ठुकरा भी दे तो हतास हो हैं जाते ।ज़िन्दगी का सफ़र एहसांसो से भरा हैं अगर 
हार भी रहे हो तो क्या फर्क पड़ता है। तुम हर पल कुछ सीख रहे हो।ये जो हसीन रिश्ते बना रहे हो किसी जीत से कम नहीं हैं ।ज़िन्दगी एहसांसो से भरा सफ़र हैं इससे उदास रहने में। इसे शिकायत करने में ज़ाया ना करो।

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