Chhalawa


Shazia



कितनी मुश्किल से ...
कितनी मुश्किल से मैं तेरी गिरफ़्त से बाहर आयी थी,
कि एक बार फ़िर से तूने मुझे अपना बना लिया ...
जिस प्यार के एहसास में डूब कर मैं खो गई थी,
कि एक बार फ़िर से तूने मुझे उसमें ही समा लिया ...
पिछली बार तो उस छलावे से बचकर निकल आयी थी मैं,
कि इस बार अगर सच भी है तो छलावे से कम नहीं, 
ग़र वो एहसास आज तेरे दिल में भी हलचल करता है भी तो क्या 
कुछ लकीरें ऐसी हैं जिन्होंने उस एहसास को है फ़ना किया ....

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