देखते हैं


pritam borkar



वो जो तारा टूटा था इक रोज़
किसी की दुआ में आसमान से
दुआ कबूल हो गई क्या उसकी

तपती आग में जो इटे पक रही थी
किसी के सपनों का घर बनने
वो घर पूरा हुआ क्या किसी का

समशान में ले जा रहे थे उस लाश को
जल कर खाक हो गया होगा वो जिस्म
क्या जन्नत में जगह मिल गई होंगी उसे

सड़क के किनारे जो बाहें पसारे
रोटी की भिक मांग रहा था
देखा था मैंने किसीको उसे निवाला देते हुए
भूक मिट गई होंगी क्या उसकी

वो जो शाकोंसे पत्ते गिरकर
छू रहे थे ज़मीन को नई बहार की आस में
पतझड़ बाद नई चादर ओढ़ी होंगी क्या उस पेड़ ने

सुकून की जिंदगी के लिए
तुमने भी दोस्ती ठुकरा दी हमारी
देखते हैं तुम्हें वो सुकून कि जिंदगी
मिलती हैं या नहीं ।

गोड_तु

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