विस्मय: एक जीवन गाथा


An Uneven Guy



मैं इरादतन मौन रहा करता हूँ, मुझे अभिव्यंजना कोयल सी नहीं प्यारी। मुझे भी बोलना है इक दिन, मैं सीख रहा हूँ कौआ होना।। जाने किसे ढूँढा करती है? मुझे जानना है उस मक्खी का यूँ गंदगी से प्रेम। क्यों चुप-चाप पीता रहता है हलाहल, मुझे जानना है विषधर का त्यागी आचरण भी। ईर्ष्या तो होती है देखकर.. पिपीलिका होना स्वप्न ही है परंतु। मुझे जानना है मधु के संचय की बाध्यता को!? जंगल सुरछित हैं बेशक.. पर मैं अभागा जा नहीं सकता उस लोक!! मुझे सीखना है शहरों का रहन, सहते-सहते।।

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